तेरे ज़ज्बात की खुशबू से कुछ ऐसे महक गयी हूँ मै
दरिया के सारे बंधन तोड़ किनारों से छलक गयी हूँ मै
घिसती जा रही हूँ हिना बनकर पाने को रंग शादाबी...
फ़िर से मूरत में ढल जाने को शिद्दत से तड़प गयी हूँ मै...
हर तूफ़ान है समेटा सीने में जो भी तेरी राह में आए...
उन्ही लहरों में बह जाने को तिनके सी मचल गयी हूँ मै...
ये कौन सा जहाँ है जहाँ खुशबूएं नही उतरा करतीं...
तेरे कुर्बत के ख्याल से ही पंछी बन चहक गयी हूँ मै...
आग से आब का होता है कुछ ऐसा ही अनोखा रिश्ता...
अब जाना क्यूँ बूंदों से बादल में बदल गयी हूँ मै....
Sunday, August 30, 2009
ये जरूरी तो नहीं कि जमीं और फ़लक मिले ही...
किसी ने अबतक क्षितिज को देखा है क्या करीब से...
यूँ सुना बहुत है कि चकोर देखता है चाँद को एकटक...
हमने तो एक कातिल नज़र भी पाई है बड़े नसीब से...
कलियों से हमने पूछा कि कैसा है एहसास-ऐ-यौवन...
आज फ़िर काँटों ने हमें घूर कर देखा बड़े अजीब से...
सर चढ़ जाय तो एक मर्ज है वरना है एक खुमारी...
मोहब्बत क्या शय है ज़रा पूछना किसी गरीब से.....
किसी ने अबतक क्षितिज को देखा है क्या करीब से...
यूँ सुना बहुत है कि चकोर देखता है चाँद को एकटक...
हमने तो एक कातिल नज़र भी पाई है बड़े नसीब से...
कलियों से हमने पूछा कि कैसा है एहसास-ऐ-यौवन...
आज फ़िर काँटों ने हमें घूर कर देखा बड़े अजीब से...
सर चढ़ जाय तो एक मर्ज है वरना है एक खुमारी...
मोहब्बत क्या शय है ज़रा पूछना किसी गरीब से.....
इस डोर के उस छोर पर किसी को मेरी भी तो परवाह होगी...
चौराहे तो है ही पर रास्तों की भी तो कोई अपनी पहचान होगी...
धुआं उठता है तो,उठने दो, मत भागो बेमकसद उसके पीछे...
जरा हौले से राख को छेड़ना,उसके सीने में भी दबी आग होगी...
नर्म रिश्तों पे यूँ खुरदुरे ज़बान के नश्तर तो न चलाओ...
मै न कहूँ और तुम समझ लो, ऐसी भी तो कोई ज़बान होगी...
वक्त मिलो तो कभी parchayiyon में भी उलझ कर देख लो...
मुझे तो यकीन है कि इससे जिंदगी और भी आसान होगी...
सोचती हूँ इन तस्वीरों पर एक और बार कुंची फेर दूँ....
काश जान लूँ उस शय को जिससे मंसूब मेरी जान होगी...
चौराहे तो है ही पर रास्तों की भी तो कोई अपनी पहचान होगी...
धुआं उठता है तो,उठने दो, मत भागो बेमकसद उसके पीछे...
जरा हौले से राख को छेड़ना,उसके सीने में भी दबी आग होगी...
नर्म रिश्तों पे यूँ खुरदुरे ज़बान के नश्तर तो न चलाओ...
मै न कहूँ और तुम समझ लो, ऐसी भी तो कोई ज़बान होगी...
वक्त मिलो तो कभी parchayiyon में भी उलझ कर देख लो...
मुझे तो यकीन है कि इससे जिंदगी और भी आसान होगी...
सोचती हूँ इन तस्वीरों पर एक और बार कुंची फेर दूँ....
काश जान लूँ उस शय को जिससे मंसूब मेरी जान होगी...
कसक में भी एक कशिश है...
मोहब्बत की ये कैसी तपिश है...
दिल छू लेने वाली यह तक़रीर है...
नज़रों ने नज़रों पे लिखी यह तहरीर है...
यह ग़ज़ल है ,दिली दास्ताँ है...
ख़ुद ही कारवां है, ख़ुद ही रास्ता है...
धड़कन से धड़कन तक ज़ज्बों की हमसफ़र...
अनछूए लबों की मासूम जुम्बिश है...
कसक में...
मदमाती मचलती यह कहकशां है...
यौवन भी तरसे वह maykashan है
हज़ार रंगों से सजा यह शीशमहल है
शबनमी अश्कों की मासूम पहल है...
कुंदन से निखर जायं दो दिल...
ज़शनी ज़ज्बों की वो जुनूनी आतिश है...
कसक में.....
दिली वादियों का शादाबी बज्म है...
रूमानी नगमों का रानाई नज़्म है...
यह पाक अक्स है अश्कों से सजा...
एक इल्हाम है और खुदाई रज़ा...
ग़मी-आशनाई के बोझिल पलों में...
हसीं ज़ज्बों की मखशूश बारिश है...
कसक में...
कसक में भी एक कशिश है...
मोहब्बत की ये कैसी तपिश है...
मोहब्बत की ये कैसी तपिश है...
दिल छू लेने वाली यह तक़रीर है...
नज़रों ने नज़रों पे लिखी यह तहरीर है...
यह ग़ज़ल है ,दिली दास्ताँ है...
ख़ुद ही कारवां है, ख़ुद ही रास्ता है...
धड़कन से धड़कन तक ज़ज्बों की हमसफ़र...
अनछूए लबों की मासूम जुम्बिश है...
कसक में...
मदमाती मचलती यह कहकशां है...
यौवन भी तरसे वह maykashan है
हज़ार रंगों से सजा यह शीशमहल है
शबनमी अश्कों की मासूम पहल है...
कुंदन से निखर जायं दो दिल...
ज़शनी ज़ज्बों की वो जुनूनी आतिश है...
कसक में.....
दिली वादियों का शादाबी बज्म है...
रूमानी नगमों का रानाई नज़्म है...
यह पाक अक्स है अश्कों से सजा...
एक इल्हाम है और खुदाई रज़ा...
ग़मी-आशनाई के बोझिल पलों में...
हसीं ज़ज्बों की मखशूश बारिश है...
कसक में...
कसक में भी एक कशिश है...
मोहब्बत की ये कैसी तपिश है...
Monday, August 17, 2009
रात ने फ़िर की है तारों से गुफ्तगू ,बड़ी चर्चा है आजकल...
कुछ तो बात है जो सूरज बड़ी देर से ढलता है आजकल...
परिंदे अब यूँ साँझ ढले भटका नहीं करते है देर तक...
इंसानों की तीसरी आँख से बड़ा खतरा है आजकल...
यूँ तो मुझे खामख्याली में खुश होने से गुरेज नहीं...
हर दरार से मानो रौशनी रिसती भर है आजकल...
यूँ करीब हो रहे है दायरे कि फंस जाने का डर है...
दिल्ली है पास दिल तो बड़ा दूर है आजकल...
कुछ तो बात है जो सूरज बड़ी देर से ढलता है आजकल...
परिंदे अब यूँ साँझ ढले भटका नहीं करते है देर तक...
इंसानों की तीसरी आँख से बड़ा खतरा है आजकल...
यूँ तो मुझे खामख्याली में खुश होने से गुरेज नहीं...
हर दरार से मानो रौशनी रिसती भर है आजकल...
यूँ करीब हो रहे है दायरे कि फंस जाने का डर है...
दिल्ली है पास दिल तो बड़ा दूर है आजकल...
Sunday, August 16, 2009
Saturday, August 15, 2009
मेरी जिंदगी से यूँ खुशबू के रंग चुरा के चल दिए.......
मेरी रुसवाइयों पे जालिम वो मुस्कुरा के चल दिए......
यूँ दरिया में आब इतना कम भी न था.....
पर हुक्मरान वो मेरा अश्क चुरा के चल दिए....
उनके गलीचे में बिछे थे शबाब हर तरफ़ .......
मेरी मय्यत से एकलौता गुल चुरा कर चल दिए.....
फानूसों से दजे दर थे, जन्नत का वो जहाँ था ......
दुश्मन वो मेरे आँगन की चाँदनी चुरा के चल दिए.....
तंगहाली तो बन गई यूँ ही मुकद्दर हमारा......
हद हो गई आज वो एहसास-ऐ-गफलत भी चुरा के चल दिए....
मेरी रुसवाइयों पे जालिम वो मुस्कुरा के चल दिए......
यूँ दरिया में आब इतना कम भी न था.....
पर हुक्मरान वो मेरा अश्क चुरा के चल दिए....
उनके गलीचे में बिछे थे शबाब हर तरफ़ .......
मेरी मय्यत से एकलौता गुल चुरा कर चल दिए.....
फानूसों से दजे दर थे, जन्नत का वो जहाँ था ......
दुश्मन वो मेरे आँगन की चाँदनी चुरा के चल दिए.....
तंगहाली तो बन गई यूँ ही मुकद्दर हमारा......
हद हो गई आज वो एहसास-ऐ-गफलत भी चुरा के चल दिए....
Friday, August 14, 2009
......
Dhooen ka rang syah kyun....
hai rakh me itani aag kyun....
ab tak to chand tanha tha.....
is bat par itna bawal kun....
gar khush hai jameee aasman sang kisi andekhe kshitij par.....
gar badalon ne bahka diye hain bundon k kadam jamee par.....
hawa k rukh ne jo mor dale hai naseeb kaynat k....
kaliyon ne tod dale hai bandhan sabhi jamat k....
to jindagi ne apne tewar kam to nahin kar diye....
aaftab ne parchaiyon k rukh to nahin mor liye....
na badla hai naseeb abtak un parwanon ka....
shaman kuredati hai jakhm har deewanon ka....
hum itne nadaan to nahin ki
chandani ko rok len...
aur chand jab mange hisab ...
to jindagi ko chod den....!!!!!
Wednesday, August 12, 2009
kaliyon se yun khuleaam madhoshi ka aalam na pucho.....
roshni ko kaho ab band kar de yun phoolon ko gudgudana....
aasman me wo patli si jo rupahali lakeer hai....
usi ne to gaya hai dharti k liye pyar ka tarana....
yun sach hai ki mera sayebaan ek jarjar sa makaan hai
jiski chhat ki ek patali si darar se jhankata hai mere raushni ka khajana...
roshni ko kaho ab band kar de yun phoolon ko gudgudana....
aasman me wo patli si jo rupahali lakeer hai....
usi ne to gaya hai dharti k liye pyar ka tarana....
yun sach hai ki mera sayebaan ek jarjar sa makaan hai
jiski chhat ki ek patali si darar se jhankata hai mere raushni ka khajana...
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