धुएं का रंग स्याह क्यूँ ....
है राख में इतनी आग क्यूँ ....
अब तक तो चाँद तन्हां था .....
इस बात पर इतना बवाल क्यूँ ....
गर खुश है जमी आसमां संग किसी अनदेखे क्षितिज पर .....
गर बादलों ने बहका दिए हैं बूंदों के कदम जमी पर.....
हवा के रुख ने जो मोड़ डाले है नसीब कायनात के ....
कलियों ने तोड़ डाले है बंधन सभी जमात के ....
तो जिंदगी ने अपने तेवर कम तो नहीं कर दिए....
आफ़ताब ने परछाईयों के रुख तो नहीं मोड़ लिए....
न बदला है नसीब अबतक उन परवानों का....
शमां कुरेदती है ज़ख्म हर दीवानों का....
हम इतने नादां तो नहीं कि
चाँदनी को रोक लें ...
और चाँद जब मांगे हिसाब ...
तो जिंदगी को छोड़ दें....!!!!!