Monday, November 28, 2011

१.
तुम्हारी यादों को अपनी
चुन्नी का
सफ़ेद कफ़न ओढा रखा था...
आज फिर उसीको-
ओढ़नी बनाये 
घूम रही हूँ..
बाजार से कुछ चीजें 
खरीदनी बाकी रह गयी थीं...


२. 
अच्छा हो कि आज साकी तू बन जाये रकीब
देख तो..
तलब के होंठों पर थूक
वैसे ही सूख जाती है जैसे 
चीनी के समंदर में 
मोहब्बत के गुलाब...!!!

३.
हाथों के कटोरे में थोड़ी सी रौशनी छिप के
आई मेरे दर तक
दिए को टिमटिमाते देखकर
कूद गयी वो भी चारदीवारी से बाहर..
बित्ते भर जमीन पे कड़ी हूँ..
मौत को फुसलाकर ..
चार गज जमी पाना आसन कब था-

४.
हिम्मत को बुन रही हूँ हकीकत के ऊन से
पैबंद लगाने को थोडा उजाला चाहिए
मै रातों में जुगनुओं को पकड़ खेल लेती हूँ भोर होने तक
सर्द रातों की बारिश सा सर्द कुछ टूटता जा रहा भीतर
चुपचाप
बेआवाज सा ...
ताश के पत्ते-
बेगम और गुलाम
भींग हुए भी रंगीन से है...

५.
खामोशी ने आशिकी से पूछा
ऐ रंग तू इतना बेनूर क्यूँ है -
सपनों की तह लगाकर
'बस लौटी हूँ अभी अभी
रातों की परते  गिनती रही मै सारी रात
और सहेज रही हूँ 
अपनी परछाइयों की 
सलवटें..!!


रात की रानी के सुगंध सी
जिंदगी..
थोड़ी हलचल थोड़ी मंद सी 

पलकों क पीछे के संसार सी 
जिंदगी
अलमस्त भोर के बहार सी 

निर्झर कलकल सुर नाद सी 
जिंदगी
मुश्किल लम्हों के बाद सी 

परछाइयों से उठते आवाज़ सी 
जिंदगी 
नर्म पंख के पहली परवाज़ सी

गुनगुनाती चुप्पियों के राज सी
जिंदगी 
जिजीविषा के अद्भुत साज़ सी