Saturday, August 15, 2009

मेरी जिंदगी से यूँ खुशबू के रंग चुरा के चल दिए.......
मेरी रुसवाइयों पे जालिम वो मुस्कुरा के चल दिए......

यूँ दरिया में आब इतना कम भी न था.....
पर हुक्मरान वो मेरा अश्क चुरा के चल दिए....


उनके गलीचे में बिछे थे शबाब हर तरफ़ .......
मेरी मय्यत से एकलौता गुल चुरा कर चल दिए.....

फानूसों से दजे दर थे, जन्नत का वो जहाँ था ......
दुश्मन वो मेरे आँगन की चाँदनी चुरा के चल दिए.....

तंगहाली तो बन गई यूँ ही मुकद्दर हमारा......
हद हो गई आज वो एहसास-ऐ-गफलत भी चुरा के चल दिए....