Sunday, November 28, 2010

तुम्हारी यादों को अपनी
चुन्नी का
सफ़ेद कफ़न ओढा रखा था...
आज फिर उसीको-
ओढ़नी बनाये
घूम रही हूँ..
बाजार से कुछ चीजें
खरीदनी बाकी रह गयी थीं...

Saturday, November 20, 2010

नजर में झांक लूँ तो मौजूं तमाम शहर है..
ये मेरी चाहत का सहर है..
या तेरी तमन्नाओं का घर है..
इश्क की उम्र यूँ तो बस चार पहर है..
जाने तेरे अंदाज़ में क्या जादू है कि..
मेरे हर एहसास में तेरी शिद्दत का बसर है..
कायनात से भी उम्दा ये तेरा दर है..
इस ख्वाब के बिना अब कहाँ गुजर है..?