Saturday, October 23, 2010

प्रेम के समंदर की त्रिज्या का माप किसे पता है ..
ह्रदय में उठ रहे भंवर का अपकेंद्री बल अलहदा है..
अभिराम क्षितिज मृगमरीचिका सा आँखों का धोखा है..
भागते वायुमंडल को गुरुत्वाकर्षण ने ही तो रोका है..

धरती की गर्भ में जब फण तीव्र शेषनाग लहराता है..
द्रुत दामिनी तड़ित से अम्बर पर चित्र बन जाता है..
कह दे कोई उर्जा का वह अतुल्य स्त्रोत कहाँ छिपा है..
भौतिकी की सीमा का क्या बड़वानल को भी पता है..?

कौन माप सका है अबतक समुद्र की उर्मियों उत्ताल को..
नक्षत्र निकर, तारे और अगणित ग्रहों के जाल को..
जीवन जिसकी चाल से अकस्मात् रूप पा जाता है..
उस आकाशीय पिंड की दशा की कहाँ कोई परिभाषा है..

तूफानों की हलचल पाखी को, असल तत्ववेत्ता हैं..
काग क्यूँ हरबार अनजानी कोकिला के अंडे सेता है...?
इस वटवृक्ष का सचमुच ही आधार गगन में फैला है..
जान के भी मानुष कब अमृत रहस्य को चेता है..!

जिजीविषा पर दूभ का क्या सर्वाधिकार सुरक्षित है..?
जैव क्रिया सांसारिकता बस अर्थशास्त्र को ही लक्षित है..
सृष्टि स्वयं में विज्ञान का अद्भुत प्रदर्श औ' आख्यान है..
प्रमेय ज्ञान भी  मान्यताओं के अनुभूत जाल से रक्षित है..!

सूर्य प्रकाश और जल का पाया कहाँ नर ने विकल्प है..!
समय भ्रमण और प्रायोजित जीवन विज्ञान के गल्प हैं..!!
प्राकृतिक ऊष्मा जबतक मानव ह्रदय में विद्यमान है..
स्वतःस्फूर्तता ही जीवन की अप्रतिम विशिष्ट पहचान है..!!!