रात ने फ़िर की है तारों से गुफ्तगू ,बड़ी चर्चा है आजकल...
कुछ तो बात है जो सूरज बड़ी देर से ढलता है आजकल...
परिंदे अब यूँ साँझ ढले भटका नहीं करते है देर तक...
इंसानों की तीसरी आँख से बड़ा खतरा है आजकल...
यूँ तो मुझे खामख्याली में खुश होने से गुरेज नहीं...
हर दरार से मानो रौशनी रिसती भर है आजकल...
यूँ करीब हो रहे है दायरे कि फंस जाने का डर है...
दिल्ली है पास दिल तो बड़ा दूर है आजकल...
कुछ तो बात है जो सूरज बड़ी देर से ढलता है आजकल...
परिंदे अब यूँ साँझ ढले भटका नहीं करते है देर तक...
इंसानों की तीसरी आँख से बड़ा खतरा है आजकल...
यूँ तो मुझे खामख्याली में खुश होने से गुरेज नहीं...
हर दरार से मानो रौशनी रिसती भर है आजकल...
यूँ करीब हो रहे है दायरे कि फंस जाने का डर है...
दिल्ली है पास दिल तो बड़ा दूर है आजकल...
बहुत खूबसूरत रचना ...
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