Thursday, September 2, 2010

बहुत साल पहले एक कविता लिखी थी..शायद ७-८ साल पहले.. तब मै 8th कक्षा में थी ..आज बड़ी मुश्किल से पाया है उसे... तो सोचा की उसे आप तक पहुंचाऊँ.. शीर्षक रखा था- बदनाम बस्ती...

बाबूजी ये हमारी अँधेरी गुमनाम बस्ती है..
दर्द- गम तो नहीं पर आबरू सस्ती है..


संग रंगीन ख्वाब नहीं, तल्ख़ हकीकत है..
दो जून रोटी और कपडे भी गनीमत हैं..
नसीब अँधेरा,जिंदगी दुखों का डेरा है..
मानो ब्रह्मा ने भी हमें अनगढ़ ही उकेरा है..
हरेक पल हमारा बदनसीबी का बसेरा है..
दिलो दिमाग हरओर छाया घनघोर अँधेरा है..


रंज गम की ही बस यहाँ पर गश्ती है..
बाबूजी, ये हमारी चोटिल, बेजान बस्ती है..!!


मानते हैं कि जीकर भी कुछ फायदा है नहीं
जिल्लत-ऐ-जर्द जिंदगी का साया हटेगा नहीं
अच्छा भैय्या! जियो तुम्ही हमारे रचित महल में
बेनाम लाशों पे हमारी चलो खूब मचल के..
जीके या मरके देंगे बस तेरे ही ख्वाबों को जमीं
तब भी कसम है इन आँखों को, आई जो नमी..!!


मान भी लो कि हमीं तुम्हारे सुखों कि कश्ती हैं
बाबूजी! फिर भी लगती तुम्हे ये अनजान बस्ती है..?

पूछते हो तो चलो एक जाना राज बताऊँ.
हाल इस बदनसीब चमन का तुम्हे भी सुनाऊँ
सभ्य तो तुम बड़े हो पर सभ्यता हमरी लूटकर..
मर्यादा अपनी निभाते हो मलीन गात हमरी चूसकर
छोड़ो भी अगर जमीर खुद तुम्हारा ही शर्मसार है
आ जाना जब जी करे, खुला ये बाजार है..


हरवक्त सौगात तुम्हे मस्ती ही मस्ती है..
जी हाँ बाबूजी! ये बड़ी बदनाम बस्ती है.

 दस्तूर-ऐ-दुनिया खूब समझ लिया हमने
जीतता है वही जमी को खूब मसला जिसने..
पर याद इतना रखो बस बिसारो नहीं..
बिना जमी के ज़माने में भी है लौ नहीं
हरपाल एक दोराहे पे हम हैं खड़े
बंद आँखों से नहीं माप सकोगे हमें


बहार तो नहीं बरक्स खिजां कि आश्वस्ति है..
बाबूजी! ये तो हमारी अनाम बस्ती है


लेकिन बस अब और न लो परीक्षा हमारी
तुम्हारे लिए अबतक अपनी हर इच्छा है मरी
पर बहुत सहा हमने, अब तुम्हारी है बारी
कंही हो न जाय ये बदनसीबी तुमपर भी तारी
बस! बंद करो ये जुल्मों सितम ढाने अब..
पलट जाये बाज़ी कोई क्या जाने कब....


जरुरत और जिद में हमारी तुम्हारी जब-जब ठनती है
कह देते हो बाबूजी! ये तो बड़ी शैतान बस्ती है..!!


बाबूजी ये वही बेजान, अनजान,बदनाम, अनाम,शैतान बस्ती है..!!

4 comments:

  1. आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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  3. thnx... ji aapki daleej par hi thi abhi...
    aapko bhi shubhkamnaen..janmashtami ki..!

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  4. very gud. choti si umar me kaafi acha likha aapne. bhav vibhor kiya aapki kavita ne

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