एक नयी सी ख्वाहिश जन्मी है..
और जिंदगी शराब..
वक़्त की गोटियाँ
मुठी में रगड़कर फेंकते रहे
सपनों के तालाब में
और सूख सूखकर आम के
पत्ते परिंदों की नर्म सेज बनते रहें..
मेरी आवारगी को बदकिरदार न कर तू..
देख तो
रेत के महल में भी
किरदार के
दर्पण लगा रखे हैं मैंने..
अहा ..!!
तेरे होठों पे तरन्नुम हैं..
आँखों के शबनम को बता दे न..
इस हवेली का चोर दरवाजा..
अब तो बस पतंगों की डोर खींचे हम
और जिंदगी उनकी परवाज भरती रहे
ऐ शख्स
वो मेरी नफ़रत नहीं..
प्यार का मंझा था..
हम जानते थे तुम पूछोगे-
कि बादलों के पार जाने का हुनर क्या हैं
अच्छा हो कि आज साकी तू बन जाये रकीब
देख तो..
तलब के होंठों पर थूक
चीनी के समंदर में
मोहब्बत के गुलाब...!!!