तुम्हारी यादों को अपनी
चुन्नी का
सफ़ेद कफ़न ओढा रखा था...
आज फिर उसीको-
ओढ़नी बनाये
घूम रही हूँ..
बाजार से कुछ चीजें
खरीदनी बाकी रह गयी थीं...
Saturday, November 20, 2010
नजर में झांक लूँ तो मौजूं तमाम शहर है..
ये मेरी चाहत का सहर है..
या तेरी तमन्नाओं का घर है..
इश्क की उम्र यूँ तो बस चार पहर है..
जाने तेरे अंदाज़ में क्या जादू है कि..
मेरे हर एहसास में तेरी शिद्दत का बसर है..
कायनात से भी उम्दा ये तेरा दर है..
इस ख्वाब के बिना अब कहाँ गुजर है..?